आज मन नहीं मेरा
0कागज़ गोदी में है,
हाथ में कलम है ,
और हाथ है,
कागज़ की पहली रेखा पर ||
मन में भ्रमरते कुछ शब्द
सुन्दर, बड़े मन भावन
जुड़ जुड़ कर कुछ
पंक्तियाँ सजा रहे हैं
मुझे दिखा रहे हैं
मानो पूछ रहे हो
इजाजत मांग रहे हो
स्याही से प्रतिबिंबित होने की
पर,
पर आज मन नहीं मेरा
उनका पिरोने का
रेशमी धागे में लपेट
कुछ मनमोहक बनाने का
और,
बात तो मेरी सदा मानते हैं
मेरे शब्द हैं
मेरा कहा न टालते हैं
मैंने कहा लौट जाने को
तो निकल परे विचरण को
देखो, प्रस्तुती दे रहे हैं
वही एक मंच सजा कर
आह!
बड़ा मनमोहन दृश्य बना रहे
पर,
पर आज मन नहीं मेरा, इन्हे कागज़ देने का
दिल नहीं मेरा !!
-------------Archana.