आजा री ओ निंदिया रानी (लोरी)
0लौरी
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आजा री ओ निंदिया रानी
मेरी गुड़िया सुला सुला जा।
आज बहुत रोई है गुड़िया
मम्मी इसकी गई पढ़ाने,
घर की मजबूरी के आगे
समय और को भेंट चढ़ाने।
मेरी गुड़िया भोली भाली
इसकी पीड़ा भुला भुला जा।
आ जा री ओ निंदिया रानी
मेरी गुड़िया सुला सुला जा।
इसके पापा बाहर रहते
प्यार नहीं उनका यह पाती,
कुछ दिन आते फिर चल जाते
उनकी यादें इसे सताती।
तू ही निंदिया अब बाहों में
आकर इसको झुला झुला जा।
आजा री ओ निंदिया रानी
मेरी गुड़िया सुला सुला जा।
मैं तो इसकी दादी हूँ री
नहीं जगह माँ की ले सकती,
जब इसके आँसू ढलते हैं
मेरी तो साँसें ही रुकती।
आजा इसके बचपन में तू
द्वार खुशी का खुला खुला जा।
आजा री ओ निंदिया रानी
मेरी गुड़िया सुला सुला जा।
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लेखक : सुरेश चन्द्र 'सर्वहारा'