असभ्य लंगूर
1जंगल के सारे लंगूर ,
खाते थे मीठे अंगूर ,
कितुं मनु पुत्रों को कहां सहूर ,
सब जंगल कर दिये चकना चूर,
कितनों को घर से किया दूर ,
अब जब मर्कट झांके हाट बजार,
तो कहते -
देखो आगये वो असभ्य लंगूर ll
जंगल के सारे लंगूर ,
आम खाने में थे मशहूर ,
किंतु कुटिल बुद्धि मनुज मगरूर,
काट दिये वृक्ष भरपूर ,
अब जब कपि झूले ,
मानुष निज खाट ,
तो कहते -
देखो आगये वो असभ्य लंगूर ll
© अंकिता सिंह,
लखनऊ , उत्तर प्रदेश
Email -
anks26.as@gmail.com
Dedicated to
Homeless monkeys
Dedication Summary
Please save Forest as it is home of several animals.