असली हीरो तो हमारेँ पापा ही होते है
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सच कहूँ असली हीरो तो हमारेँ पापा ही होते है..,
भूख कितनी भी बडी हो पहले हमे खिलाते है,
खुद को कितनी भी बडी चोट लगेँ
क्यूँ परिवार से छूपाते है,
और हमारे ज़रा से जुकाम पर…
डाक्टर के पास ले जाते है.,
घोडा बन हमारे बचपन को ढोते है..,
असली हीरो तो हमारे पापा ही होते है…!
कितना अच्छा लगता है जिन्हे पापा स्कूल छोडने जाते है,
पास की दूकान से चीजे दिलाते है,
रात को खाने के लिए जलेबी लेके आते है,
हा!!! माना डाटते है
मारते है,
पर ऐसा करने पर वो खुद भी पछताते है,
अपने आप को सजा देते है
वो भूखे रह जाते है..,
घर मे सूख-चैन के बीज तो वो ही बोते है…
असली हीरो तो हमारे पापा ही होते है…!
खूद कभी ना पढ़े हो
मगर बच्चो को पढाते है,
एक गरीब घर के पापा
ना जाने क्या-क्या कर कमाते है,
कोई सारा दिन रिक्शा चलाते है,
तो कोई
तपती धूँप मे ठेला लेकर निकल जाते है,
सबसे थके हारे
वो आखिरी मे सोते है.,
असली हीरो तो हमारे पापा ही होते है…!
कहने लगे मूझसे चाँद-सितारे
कि
`आलोक लिख’
एक बेटी के पिता होते है बडे प्यारे,
जेब मे भले पैसे ना हो
मगर बेटी को रानी बना के रखते है,
खूद फटे-पूराने कपडे पहने
बेटी को सजा के रखते है,
अपनी बेटी के मानो दोस्त ही बन जाते है,
लाड बडा करते है
मगर जरा भी नही जताते है.,
“जब विदा होने लगे एक पापा की लाडली”
वो भरी आँखो मे आँसु छूपाते है.,
ना जाने फिर क्यूँ वो अकेले मे अकेले मे रोते है…….
असली हीरो तो हमारे पापा ही होते है..,
असली…हीरो….तो हमारे पापा ही होते है…!!!
by
Alok Upadhyay