बालिका :- समाज का आईना
0बालिका है समाज का आईना ,
किसी को देता यह दिखाई ना ,
अपशकुन मत समझो इसका होना ,
फेंको मत समझकर इसको खिलौना,
देखो ये कन्या की बात है,
इनको पालना पुण्य की बात है,
रब की भेजी ये सौगात है ,
इनके कारण बनती बारात है ,
पुत्र हुआ तो किया जश्न,
पुत्री हुई तो किया भस्म ,
बेटा शब्द सुनना है पसन्द,
बेटी अपनाने में करते शर्म,
हौंसला उसका एकदम भारी,
उसने संभाली इतनी जिम्मेदारी,
वो हमसे बस प्यार चाह रही ,
ये दुनिया दुःख दिए जा रही ,
पिता की रकम पुत्र पर जा रही ,
पुत्र की नासमझी बढ़ती जा रही,
बेटी की चिंता घटती जा रही,
सारी बुराईयां बेटी पर लादी जा रही,
ध्यान कम रखते बेटी की पढ़ाई पर,
बयान पूरा देते उसकी उम्र के ऊपर ,
रो कर आंसू निकालते विदाई पर,
बोझ हल्का समझते पराई होने पर,
पसन्द क्यूं नहीं तुम्हें उसका बसना,
भूल जाते बनाकर उसको सपना,
पुत्र की तरह समझो उसको भी अपना,
उसको भी चाहिए ये जग दिखना ,
पुत्र को मांगने पर लाकर देते BALL,
पुत्र की पूरी इच्छाएं हैं पूरा HALL,
बेटी की चीज़ों में होती नाप-तोल,
पूरे करो बेटी के भी अपने GOAL ,
माता ! संभाल तू अपनी कोख,
पुत्री को मत जाना ऐसे सोख,
ये प्यारा सा ले तू बोझ,
कथन ये सुनता हूं मैं रोज,
शपथ लो नारी को हंसाना है,
परिस्थितियों में साथ निभाना है,
बालिका दिवस पर जागरण कराना है,
इनको कैसे भी हमें बचाना है ,
:--- कवि :- नवीन कुमार मीना [ N.K.M. - LYRICIST ]
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Dedicated to
समाज
Dedication Summary
समाज में बालिका पर अत्याचार होने से रोकना मेरी इस कविता का सार है |