बरसात की बूंदे
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टप- टप टपक रहे हैं बूंदे बादल से।
भीग रहे हैं गोरी के रूप हरे केश।
वो झूमती है मस्ती में इठलाती है।
टर्र- टर्र मंडूक आवाज़ लगाए, देते कर्ण में संदेश।
ओझल आंखो के नजारे, तेजी से जब आंधी आई।
बरसात की बूंदे पड़े बदन पर, वो कहने लगे चिपका लो आकर।
थप- थप ता ता थैया मृदंग बजाए मेंढक।
हिम पुरवइया गाल में छू जाए आकर।
सौंदर्य अनुभव किए, बागों के फूलों से बाते किए।
कभी वहां कभी यहां, फूलों के कलियों से।
जब- जब घन- घोर गरज से पानी आए।
चिपक जाती शर्माकर, पेड़ों के छांव में बाते करती कलियों से।
फव्वारा आया पानी के तेजी से उमड़ कर।
म ज्ज न किए घूम- घूमकर बरसातों में।
भर गए ताल तलैया बरखा में।
लौट आईं वो अपने घर, समझाया मां को हर बातों में।
लेखक- मनोज कुमार (गोंडा उत्तर प्रदेश)
