भोपाल शहर
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ये शहर बड़ा नमकीन है !
सुबह शाम पतियों पर बैठे
पोहा जलेबी खाकर ऐंठे
इसका मिज़ाज रंगीन है ...
मिलजुल सब त्यौहार म्क्नाता
भेभाव को दूर भागता
गीता कुरान शौक़ीन है ...
शैल शिखर सब ताल -तलैया
हर मौसम का सुखद रवैया
रहता न कभी ग़मगीन है ...
खुश होते आकर सैलानी
"अभिषेक" शेख की खुश नानी
खुश रहने में तल्लीन है ...
भूला -भटका जो भी आया
रोजी-रोटी जी भर पाया
ऐसी उर्वरा ज़मीन है ...
विश्व धरोहर भीमबैठका
माथा चूमे नित साँची का
हर मस्जिद धरमधुरीन है...
पढ़ने लिखने में है आगे
जड़ ज़मीन से जोड़े धागे
[ मेरा भोपाल महान है]
सचमुच भोपाल हसीन है -
Dedicated to
सभी बालसहित्य्कारको
Dedication Summary
मन मोहक कविता