अगर मेरे पंख होते
0अगर मेरे पंख होते तो, उड़कर सारे ब्रह्मांड की सैर कर ली होती। न कोई रोक टोक होती, जिधर जी करता अपना बसर कर लिया होता। एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर, डाल डाल झूमना, न कोई फिक्र न कोई रुकावट होती, सामाजिक बंधनों की कोई डोर न होत
अगर मेरे पंख होते तो, उड़कर सारे ब्रह्मांड की सैर कर ली होती। न कोई रोक टोक होती, जिधर जी करता अपना बसर कर लिया होता। एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर, डाल डाल झूमना, न कोई फिक्र न कोई रुकावट होती, सामाजिक बंधनों की कोई डोर न होत
पंछी निराले रंगीले, उड़ चले हवा में पंख फैलाकर। मंजिल तक जाना था उनका, नहीं हटे किसी से डर कर। हौसला था मन में, जाना है वहां, अपना कर्तव्य छोड़ा नहीं, संघर्ष करते रहे। पंख टूटने से डरे नहीं, हवाओं से बाते किए, सोच बदल
विस्व काव्य दिवस के अवसर पर समर्पित गौरैया-गौरेया,मैं और तुम। वो बचपन के दिन कहां हो गए गुम। तुम सुबह मुडेर पर आती थी। अपने नन्हें-नन्हें पंखो को फैलाती। वो कल की बात है,आज तार टुटा सा है। तेरा मेरा रिस्ता थोरा अनु
उन्मुक्त नीले आकाश में स्वच्छंद विचरती थी गौरैया पवन के मद्धिम झोकों से लहलहाती धान की फसल झूमती पुष्प -फलों से शोभित वृक्षों औ' हरे -भरे बागान की उपज मध्य मधुर स्वर तुम्हारा था गूंजता | महत्वाकांक्षाओं से पूर्ण
गौरैया ______ अन्धाधुन्ध विकास से, गौरैया हैरान। अपने पूर्ण विनाश का, लगा रही अनुमान।। * जंगल कट कर बन गए बहुमंजिल के फ्लैट। गौरैया के घोंसले, करते मटियामेट।। * दूषित जल विषमय हवा, नहीं अन्न तरु ठूँठ। जाना ही था एक दिन,
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