[28/05, 11:09 AM] Parmanand Kumar: ____________________ मेरे शहर को ये क्या हो गया """"""""""""""""""""""""""""""""""" मेरे शहर को, ये क्या हो गया? सुना है कि सब वे वफा हो गया। गले लिपट रहा था, हाथ भी न मिला रहा ईद के मौके पर भी डरती निगाहों से एक दूसरे का दुआ कबूल किया। हाय! म
19 -Apr-2020 Sandeep Kumar City Poems 0 Comments 394 Views
घन घोर अँधेरा छाया है जिसने हम सबको घेरा है कुछ नज़र आता ही नहीं कुछ समझ आता ही नहीं कोई राह सुझाता ही नहीं कोई भेद बताता ही नहीं कोई जान पाता ही नहीं क्या अब होने वाला है कैसा ये समय निराला है कैसा ये बदल छाया है क्य
Ruth kar apno se chala jata hu door ... Jab yaad aati he apne sahar ki To fir jata hu mud.... Pohch kar apni zami par niklta h Dil se ek hi sur...... I love udaipur I love udaipur I love udaipur
ये शहर बड़ा नमकीन है ! सुबह शाम पतियों पर बैठे पोहा जलेबी खाकर ऐंठे इसका मिज़ाज रंगीन है ... मिलजुल सब त्यौहार म्क्नाता भेभाव को दूर भागता गीता कुरान शौक़ीन है ... शैल शिखर सब ताल -तलैया हर मौसम का सुखद रवैया रहता न कभी ग़म
_"वैसे तो हम सब हिंदुस्तानी है ,पर ये कविता इसलिए लिखा हूँ क्योंकि जब झारखंड के लोग दूसरे राज्य जाते है तो वहां उनका वेश-भूसा ओर बोली का लोग मजाक उड़ाते है ,बहुत से लोग दूसरे राज्य में ये बोलने में शर्माते है कि वे झा