ये शहर
0ये शहर कितना अजनबी सा ,हो गया है ये शहर. जैसे किसी को जानता, ही नही है शहर. मिलने को तो, मिलते है रोज सबसे यहाँ. किसी को लेकिन, पहचानता नही है शहर. यूँ तो रात - दिन, चलता रहता है शहर. रोशनी, हंगामों से, मचलता रहता है शहर. हँस
ये शहर कितना अजनबी सा ,हो गया है ये शहर. जैसे किसी को जानता, ही नही है शहर. मिलने को तो, मिलते है रोज सबसे यहाँ. किसी को लेकिन, पहचानता नही है शहर. यूँ तो रात - दिन, चलता रहता है शहर. रोशनी, हंगामों से, मचलता रहता है शहर. हँस
[28/05, 11:09 AM] Parmanand Kumar: ____________________ मेरे शहर को ये क्या हो गया """"""""""""""""""""""""""""""""""" मेरे शहर को, ये क्या हो गया? सुना है कि सब वे वफा हो गया। गले लिपट रहा था, हाथ भी न मिला रहा ईद के मौके पर भी डरती निगाहों से एक दूसरे का दुआ कबूल किया। हाय! म
घन घोर अँधेरा छाया है जिसने हम सबको घेरा है कुछ नज़र आता ही नहीं कुछ समझ आता ही नहीं कोई राह सुझाता ही नहीं कोई भेद बताता ही नहीं कोई जान पाता ही नहीं क्या अब होने वाला है कैसा ये समय निराला है कैसा ये बदल छाया है क्य
Ruth kar apno se chala jata hu door ... Jab yaad aati he apne sahar ki To fir jata hu mud.... Pohch kar apni zami par niklta h Dil se ek hi sur...... I love udaipur I love udaipur I love udaipur
ये शहर बड़ा नमकीन है ! सुबह शाम पतियों पर बैठे पोहा जलेबी खाकर ऐंठे इसका मिज़ाज रंगीन है ... मिलजुल सब त्यौहार म्क्नाता भेभाव को दूर भागता गीता कुरान शौक़ीन है ... शैल शिखर सब ताल -तलैया हर मौसम का सुखद रवैया रहता न कभी ग़म
Poemocean Poetry Contest
Good in poetry writing!!! Enter to win. Entry is absolutely free.
You can view contest entries at Hindi Poetry Contest: March 2017