रहने को सपनों के शहर में, मै अपना गावं छोड़ आई हूं... अमरूद के बगीचे, वो पेड़ो की शीतल छाव छोड़ आईं हूं...!! फसलों से लहराते खेत, वो खेल का मैदान छोड़ आई हूं... शुद्ध हवा, वो पतंगों वाला व्यस्त आसमान छोड़ आईं हूं...!! वो मिट्ट
*सर्जिकल स्ट्राइक और मोदी* शोर मचाकर लगाकर नारे, करते थे जो हमले सारे मकबूल जवाब अब मिला है प्यारे, दिख गए दिन में तारे उगले न बने निगले न बने, आफत के है बादल घने कुचले जाएंगे सब नाग फने, चबा लिए लोहे के चने बुलंद हर न
कविता: गांव की परिभाषा! पापा जी ये गांव कैसा होता है, बता दो, बड़ा उत्सुक हूं, हो सके तो जाकर दिखा दो। सुना है कि किसान वंहा पर फसले है उगाते, कैसे करते वो खेती, ये काम दिखा दो। कैसे गेंहू-चावल-गन्ना बोते है, ये सबकुछ भी
दो शब्द लिखूं भारत की शान मे अन्न धन के भरे रह थे भंडारै भारत देश मेरे मै, सोने की चिड़िया कहलावै था ज्ञान की बारिश होया करै थी इस भारत देश मेरे मैं।२ स्वत: उपजते:भूमि जिसकी फलों की सारी किस्में जिसकी, दुध दही के खाण
डाँ. आनंद का गीत खिड़की से जब बाहर झाँकों दिल दिमांग की खिड़की खोलो झूम रहे तरुवर तो निरखो हवा झुलाती झूला परखो खुशियाँ लूट रहे जी भरके तुम भी उनमें शामिल हो लो .... कहीं कहीं मैदान उघारे कहीं बस्तियाँ पाँव पसारे खुला