काम के वक्त उम्मीद
0जब घर के सारे जन लगे हों काम पर ढोने कनक थ्रैशर तक किसी एक जन का घर पर बैठा रहना उस वक्त उसे भी अजीब लगता है उसे और भी अजीब तब लगता है जब सीना निकाले निकलते जाते लोग उसके सामने से बात नहीं करते बात करने की स्थिति में ह
जब घर के सारे जन लगे हों काम पर ढोने कनक थ्रैशर तक किसी एक जन का घर पर बैठा रहना उस वक्त उसे भी अजीब लगता है उसे और भी अजीब तब लगता है जब सीना निकाले निकलते जाते लोग उसके सामने से बात नहीं करते बात करने की स्थिति में ह
मैं ना तो बहुत मेहनती लोगो में ना नाकारों में आता हूं मैं ना तो बहुत पैसे वाले लोगो में ना एकदम से फकीरों में आता हूं मैं ना तो लोगो के ख्यालों में ना शायद दिलो में आता हूं मैं ना तो उठे हुए लोगो में ना एकदम से गिरे ह
क_ काम भर ख_खेलबै ग_गाली कबो न देवै घ_से घरे समय पर जैबई ड़_ से कुछ न होतै च_से चलबै रोड के बाई ओर छ_से छतरी लगा के ज_से जैबई पढ़े असकुलिया झ_से झगरा न करबै ञ _से कुछ न होतै
मेरा गांव (कितने हसीन थे) कच्ची दीवारों पर छप्पर पड़े थे... थे घर छोटे छोटे पर दिल के बड़े थे... वो आमों की बगीयां वो सावन के झूले.. वो कपड़े की गेंदें और लकड़ी के टोले.. पनघट पर सखियां हंसी के ठिठोले.. थे कंकड़ के गुटके और
हम देश के लिए जीते हैं और देश के लिए मरते हैं देश से बढ़कर किसी को हम कुछ नहीं समझते हैं हम धर्म के लिये जीते है और अधर्म को मिटाते हैं सबका मान सम्मान कर देश की लाज बचाते हैं जागते हैं या सोते हैं देश में ही खोये रहते
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