दर्द उठा जब सीने में
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दर्द उठा जब सीने में। गाने सुनकर बहला लिया।
दिल की बात जुबां में आए। अफसाने बना कर टाल दिया।
कशमकश में अटकी सी मैं। अमावस की काली घटा छाई है।
हर तरफ एक अजीब सा अंधेरा। हर तरफ एक सन्नाटा सा छाई है।
उन गलियों से भी रुखसत हुई। जहां मैं जाया करती थी।
दिल में एक उत्तल पुथल सा है। फिर से ली सहारा सिहाई का।
कुछ अजीब सी आदत है। ना कुछ कह पाने की।
खामोशियों ने कुछ इस तरह जकड़ रखा है।
कैसे कुछ बोल पाऊं मैं।
गुम सी हो गई वह पूर्णिमा। जो कभी रोशनी की वजह थी।
वह पूर्णिमा जो काली अमावस में भी भारी पड़ जाती थी।
आ जाओ ना वापस तुम। मुझको भी तुम्हारा इंतजार है।
वह पूर्णिमा की चांद जगमग सितारों से भरा आसमां। कहां औकात फिर काली रात का।
दर्द उठा जब सीने में। गाने सुनकर बहला लिया।
दिल की बात जुबां में आए। अफसाने बना कर डाल दिया।
पूर्णिमा कुमारी गुप्ता