शायरी सी कविता सी
0शायरी सी कविता सी अंबुज सी खिली हुई भोली सी चंचल सी लकुटी सी काया पर जुल्फ घनी उपवन सी कामिनी वह भोली सी सोम्य पथगामिनी है… शायरी सी कविता सी स्नेह मृदु वाचनी है… रमा राधा सीता सी मीरा अनसुईया लगे मालती की खुशबू स
शायरी सी कविता सी अंबुज सी खिली हुई भोली सी चंचल सी लकुटी सी काया पर जुल्फ घनी उपवन सी कामिनी वह भोली सी सोम्य पथगामिनी है… शायरी सी कविता सी स्नेह मृदु वाचनी है… रमा राधा सीता सी मीरा अनसुईया लगे मालती की खुशबू स
निराशा तुझको छोड़ चुकी हूँ मैं, अब फिर से वापस न आना, आशाओं के जो फूल खिले हैं, अब तुम उनको न मुरझाना, विश्वास जगा है मन में फिर से, उम्मीद का दामन थाम चुकी हूँ, नई जोत जगी है मेरे मन में, अंधकार अब छटने लगा है, आशा की एक न
-:अभी तो पूरा काम बाकी है:- आँखे बंद सी होने लगी है, अभी तो आधी रात बाकी है, सोऊँ कैसे? अभी तो पूरा काम बाकी है। दिल तो कर रहा है नाचने को, मगर नाचूं कैसे? अभी तो पूरा इम्तिहान बाकी है। समय भी परीक्षा ले रहा है, समय भी परीक
दिल का मौसम कब बदलेगा ? पतझड़ के मौसम में, सावन का फूल जब खिलेगा । भबरो की गुन गुनाहट से, मन का आंगन जब झूमेगा । दिल का मौसम तब बदलेगा ।
बहुत सुन्दर सर मैने भी प्रयास किया बिना मात्रा की कविता का *बिना मात्रा की कविता* नर ह रह नर बन कर, थन रख हरदम तन कर। मन पर वजन कम कर, पर दरद पर नयन नम कर। हर तरफ ह नफरत जहर,जमघट सम ह यह शहर। रण पर बरस जम कर, न पद रख पथ पर थम
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