ए बदरी
0सुखि गइलें पोखरा आ जर गइलें टपरी , ए बदरी । कउना बात पे कोहाइ गइलू ए बदरी । देखा पेड़वा झुराई गइलें ए बदरी । बनरा के पेट पीठ एक भइलें घानी । कहा काहें होत बाटे राम मनमानी । गोरुअन के बेटवा क पेटवा ह खपरी , ए बदरी । कउना ब
सुखि गइलें पोखरा आ जर गइलें टपरी , ए बदरी । कउना बात पे कोहाइ गइलू ए बदरी । देखा पेड़वा झुराई गइलें ए बदरी । बनरा के पेट पीठ एक भइलें घानी । कहा काहें होत बाटे राम मनमानी । गोरुअन के बेटवा क पेटवा ह खपरी , ए बदरी । कउना ब
चान छुपउले जाली कहवाँ , घुँघटा तनिक उठाव । बदरिया हमरो केने आव । बदरिया हमरो केने आव । झुलस रहल धरती के काया छाया ना भगवान लगे । तोहरे बिना ये हो बदरी सब कुछ अब सुनसान लगे । लह लह लहके रेह सिवाने कातर नजर हटाव । बदरि
मैंने सुनी है आह न कभी सुनने की थी चाह, फिर भी मैंने सुनी है आह। कभी कर्कश आवाजें करती थी टहनियाँ, कह रही है अनकही कहानियाँ, कभी हवाओं के झोंके से मचलती थी मेरी सहेलियाँ, अब खड़ी है फैलाकर झोलियाँ, अब न कटे हमारे साथ
कोहरा आसमान लिख रहा सदियों से धरती के सुख-दुःख की कहानी बीसबी सदी की दास्तान लिखते लिखते छूट गई कलम टूट गया बाॅध हिम्मत का आठ-आठ ऑंसू बहाए आसमान ने अलसाए सुबह ने बटोर लिए ऑसूं बुनली झीनी-झीनी सफेद मटमैली चादर कोह
"पर्यावरण बचावो प्यारे" मौसम सुखे बादल रूठे माटी सूखी आंसू की बारिश,बंजर फसले हरियाली मैं कैसे लाऊँ उनके सूखे होटो पर,उपले जैसे चेहरों पर कर्ज में डूबे खेतो पर,सविधान की डाली में हरियाली मैं कैसे लाऊँ।। कैसे चाह
Poemocean Poetry Contest
Good in poetry writing!!! Enter to win. Entry is absolutely free.
You can view contest entries at Hindi Poetry Contest: March 2017