फटे-पुराने कपड़े
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फटे-पुराने कपडे
सिलती थी कुरतियाॅ
पिता के घुटन्ने
फटे पुराने कपड़ों से अम्मा!जज
पहिनकर दोनों पीटते थे ढिढोरा
अपनत्व के घनत्व का
अवकाश त्योहारों पर
मेरे कदमों की दस्तक से
मांगती थी उत्तर तपाक से अम्मा
लाए हो फटे-पुराने कपड़े?
फटे-पुराने कपड़ों को
सहेजती/सभालती/प्रेस करती/
बांधती पुटरिया
अदालती बदलती स्टील की थाली
कटोरा भगौनो से
करती जगर मगर
अपना रसोईघर
मेरी घरवाली !
स्वर्ग से झांकते अम्मा-पिता जी
देखते पुटरिया फटे पुराने कपड़ों की
खिला जाती बाछें:
रखती ध्यान अब भी पूरा पूरा---
हमारी पुत्रबधू!
Dedicated to
सभी काव्य प्रेमियों को
Dedication Summary
ग्रामीणा संस्सक्ति का परिचय देगी,