फ़िर तुम्हारे साथ
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एक अरसे बाद देखा तुम्हें, तुमसे जी भर के बातें की,
दिल खोल कर आँखों में भर लिया मैंने,
थोड़ी कमज़ोर लग रही थी तुम,
लेकिन आँखों में वही चमक कायम थी,
जो मुझे खीचती है हर बार तुम्हारी ओर,
आधा दिन गुज़ारा साथ हमने,
तुम्हें खयाल नही रहा या जान बुझकर,
तुमने दुपट्टा नही डाला इस दौरान,
ना बालों में कंघी की तुमने,
क्यों कि याद था तुम्हें,
मुझे अच्छे लगते हैं,तुम्हारे लंबे बाल ऐसे ही,
एक बार फ़िर चहल कदमी हुई तुम्हारे ज्ञान की,
तुम खुश थी मेरी कामयाबी पर,
कितने बार हँसे हम इस साथ,
कितने बार गुंजें हमारे ठहाके,कोई हिसाब नहीं,
मैं याद रखूँगा उस स्पर्श को
जो चाय के कप के साथ दिया तुमने,
उस वक्त की गरिमा याद रहेगी मुझे,
जैसे याद है पहली बार तुमसे गले मिलना,
फ़िर मारे शर्म के एकदम से छूट जाना...