रहबर दोस्त।
0मुझे अपने दोस्तों रहबरो पर बड़ा नाज़ है, दू कुछ भी तीखा, कड़वा उनको परोस कर, मगर हर बुर्की के बाद कहते हैं, क्या स्वाद है, मैं सिर्फ मुंह से बातें करता हूं, और वो दिल की भी सुन लेते हैं, लाख छुपाओ दिल के जख्मों को, मगर व
मुझे अपने दोस्तों रहबरो पर बड़ा नाज़ है, दू कुछ भी तीखा, कड़वा उनको परोस कर, मगर हर बुर्की के बाद कहते हैं, क्या स्वाद है, मैं सिर्फ मुंह से बातें करता हूं, और वो दिल की भी सुन लेते हैं, लाख छुपाओ दिल के जख्मों को, मगर व
ए दोस्त तेरी हर बात सच्ची है, मैं मानता हूं, क्या खोया और क्या पाया मै ये सब जानता हूं, तू तो अम्बालवी है, अपने जज्बातों को कलम से लिख सकता है, दर्द, प्यार इधर उतना ही है मगर तेरा दोस्त कैसे दिखा सकता है, दूर हूं शहर, दे
अब तो मुझसे मिलने आ जा तू यार, गुज़ारे थे तेरे साथ, जो मस्तियां के पल, निकाले थे तेरे साथ ,कई जवाबों के हल, आज जिंदगी के सूनेपन में कैसे फंस गए है यार, अब तो मुझसे मिलने आ जा तू यार, खाई मिलकर जो रोटी, उस रोटी की भूख लगी ह
मैं मन वचन कर्म से तुम्हारा हूं, मुझे बस थोड़ा आज़ाद रहने दो, मैं कई बेबस दोस्तों का सहारा हूं, पर मैं मन वचन कर्म से तुम्हारा हूं, मैं सारा दिन तुम्हारे बारे में सोचता हूं, हर बार, हर किसी से बस तुम्हारी बाते करता हू
जो बीत गए वो दिन भी अच्छे थे जो साथ रहे वो दोस्त भी सच्चे थे ! न पैसों का फिक्र, न समय का खयाल था न भविष्य का ज़िक्र, न बातों का मलाल था! जब जैसा होता वैसा कह देते थे मतभेदों को भी हंस कर सह लेते थे ! कभी मज़ाक बन जाते, कभी
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