गंदी कविता
0महीने की पहली तारीख को ,
पाप जब मिलनेआते हैं!
मेरे घर के दरवाज़े - खिड़की ,
सिर्फ उनकी राहें तकते हैं !
इस कड़ी धुप में माथे पर ,
झोला भर राशन लाते हैं !
मैं हाथ घड़ी का टाइम देख ,
समय की क़ीमत समझाता हूँ !
पानी बनकर अश्रु जब उनके ,
रोम -रोम से बहते हैं !
पसीने से लथपथ पापा ,
जब अपनी ग़लती सुनते हैं!
जब टूटी हुई चप्पल उनकी ,
मेरे शूज की शान घटाते हैं !
फटी हुई एड़ी पापा की ,
सब हाल बयां कर जाते हैं !
मेरे सारे टेंशन के आगे ,
जब उनका दुःख कम लगता है !
बिन देखे आगे - पीछे ,
जब लेक्चर जारी रखता हूँ !
दबी आवाज़ में बिन पानी के ,
कहते बेटा कान करो !
पड़ोस वाले सुनते होंगे ,
अपना तो सम्मान करो !
वो मैली सी एक थैली में ,
नए नोट जब आते हैं !
बिन पूछे खाना उनका ,
राशन भरने लग जाते हैं !
बिना रिंग के घंटी जब ,
इम्पोर्टेन्ट कॉल बन जाते हैं !
बिन पापा के पैर छुए ,
घर छोड़ चले हम जाते हैं !
एक झूठी सी जीवन - साथी जब ,
डीलक्स सूट बुक करवाती है !
जब महँगी सी वो मीठी बर्फ ,
बैरा से कह मंगवाती है !
जब आइसक्रीम के टुकड़े से ,
पापा की खुशबू आती है !
इकोपार्क से चिड़ियाघर ,
जब पैसे सैर कराती है !
जब चिड़ियाँघर के हर बन्दर में,
अक़्स मेरा नज़र आता है !
जब दरवाज़े पे भूखा बच्चा ,
पापा सी शक्ल बनाता है !
तब नाक़ामी के जिस्ते से,
एक पन्ना मैं चुराता हूँ !
फिर झूठे कोरे कागज़ पे ,
एक गन्दी कविता लिखता हूँ !
अभिषेक आर्या....
Very nice poem.