गणतन्त्र - दिवस
0गणतन्त्र - दिवस
प्रात हो या रात चाहे निशि-दिन झंझावात
माटी का तिलक सदा माथे पे लगाना तुम,
माटी ही है गीता औ कुरान भगवान यही
आन, बान, शान यही सबको बतलाना तुम।
खेत हो या खलिहान हो ज़मीं या आसमान
वंदे-मातरम का गीत सबको सुनाना तुम ,
वार हो प्रहार चाहे गोलियों की बौछार
दुश्मनों को मारे बिना लौट के न आना तुम।
सिंहनाद,शंखनाद करो आज एक बार
दुनिया को भारत की ताकत बताना तुम,
नेताजीसुभाष, लक्ष्मीबाई, पन्ना धाई और
बलिदानियों की कुर्बानी बतलाना तुम।
यत्र,तत्र, सर्वत्र जय-घोष कर आज
भर हुंकार कर्ज माटी का चुकाना तुम,
पीठ न दिखाना ना ही नज़र झुकाना आज
दुश्मनों के सीने पर तिरंगा फहराना तुम।