गुज़रा हुआ कल
0गलियों से गुज़रा तेरे,
क्यूंकि पैर ये हैं ठहरे,
तुमसे मिलने को ये कह रहे,
गुज़रा हुआ कल फिर से आया है
पैरों ने मुझे तेरे दर पे ठहराया है
हां मुझे फिर से वो कल याद आया है
पैरों ने मुझे तेरे दर पे ठहराया है
जो ठिकाना था मेरा,
वो मैंने छोड़ दिया है...
याद आने तू लगा,
उसे मैंने बोल दिया है...
तेरी यादों का सफर यहां ले आया है,
गुज़रा हुआ कल फिर से आया है
पैरों ने मुझे तेरे दर पे ठहराया है
हां मुझे फिर से वो कल याद आया है
पैरों ने मुझे तेरे दर पे ठहराया है
रह सकूं मैं ना अकेला,
अकेलापन मुझे सताया है...
सांसों में तू छाएगा,
पैगाम खुदा ये लाया है...
खुदा ने रास्ता तेरी तरफ का ही बताया है...
गुज़रा हुआ कल फिर से आया है
पैरों ने मुझे तेरे दर पे ठहराया है
हां मुझे फिर से वो कल याद आया है
पैरों ने मुझे तेरे दर पे ठहराया है
:---- कवि :- नवीन कुमार मीना [ N.K.M. ] , अजमेर
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