होली है.../ Holi Hai
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रंगों को आज नवजीवन मिला,
जब उनका पानी से मिलन हुआ,
पुलकित है अंदर ही अंदर उनका मन,
अगाध स्नेह सह प्रेम जब से हुआ...
प्रलाप करते दोनों मिल आज,
हम दोनों के बीच ये कैसा राज ?
तुम रंगहीन और मैं भी सुखी हूँ,
मिलने से सभी के चेहरे खिले आज...
ब्रज में हमारी ही सबको अनुराग है,
होली में ब्रज ही काशी और प्रयाग है,
भाग्यशाली है हम की प्रयोग में आते है,
सदा संसार रंगीन रहे, यही हमारा प्रयास है...
श्वेतवर्णा भी हमारे सामने शीश नवाए,
हम दोनों की कीर्ति के स्वतः यश गाए,
प्रफुल्लित वो भी हो रहा अपनें कर्मो से,
अनहद प्रकृति वाले स्वरूप की मूर्ति बनाये...
जन-जन तक हमारा यही संदेश है,
दूरियां मिटाए क्योंकि कोई न द्वेष है,
"दीपक" भी प्रेम से खेले रंगदिवस "होली"
आज सबके बीच केवल प्रेम ही निवेश है...
- © रविन्द्र श्रीवास्तव "दीपक"
पटना, बिहार