हम भारतवासी
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आज बैठे बैठे यूहीं मेरे दिल ने पुकारा ।
क्यो न कविता में पिरो दूं अपनी विचार धारा ।।
देश की मिट्टी से दूर इस सोने के नगर में ।
क्या खो गए हम सब इस ज़िदंगी की लहर में ।।
ऐ दुनियावालों ! इतने कमजोर नहीं हम भारतवासी ।
भारत माता के आदर में सदा सिर झुकाते हम प्रवासी ।।
बुलंद इरादे, असीम विश्वास से देखो भेजा हमने चंद्रयान।
तुम सब दंग रह गए और हमें हुआ अभिमान ।।
हों भिन्न-भिन्न प्रान्त, अलग-अलग मातृभाषा ।
जुड़े रहें हम देशप्रेम से, यही है अभिलाषा ।।
रखें सदा याद हम, दिया हमारे सेनानियों ने जो बलिदान।
गर्व से कहें “भारत माता की जय”, न भूलें अपनी पहचान।।
रिद्धि बाली