अपनाघर
0भरतपुर राजस्थान में लावारिस, शारीरिक एवं मानसिक अस्वस्थ लोगों की देखरेख हेतु संचालित “अपनाघर” का अवलोकन किया तो ये कविता लिखी:- “अपनाघर” मावस के घुप्प अंधेरे में, रोती आवाजें आती हैं… बिन कपड़े रिसती देहों को ज
भरतपुर राजस्थान में लावारिस, शारीरिक एवं मानसिक अस्वस्थ लोगों की देखरेख हेतु संचालित “अपनाघर” का अवलोकन किया तो ये कविता लिखी:- “अपनाघर” मावस के घुप्प अंधेरे में, रोती आवाजें आती हैं… बिन कपड़े रिसती देहों को ज
१:इंसान इंसान ना रहा यमराज बनते जा रहा यमलोक भी शरमा रहा भगवान भी घबरा रहा अब क्या करूँ इंसान का मेरा पद भी संभाल रहा! २:वो दिन भी अजीब थे नग्न वेश में, इंसान थे काल भी पाषाण थे पत्थर भी भगवान थे! ३:अब दिन वो गुज़र गया म
देश में एक नेता महान हुआ है, तन, मन, धन से जो देश के लिए जीया है, ऐसा लाल बहादुर, जो देशवासियों को समझा, और देश की नींव को दी एक अमर नारे से पहचान, जय जवान जय किसान, एक देश की सरहदों की सदा रक्षा करता, दूसरा भूख मिटाने सबक
पर्दानशीन रहते हैं तो देखेगा कौन.. अलमारी में बंद किताब को पड़ेगा कौन.. जब साझा ही नही करोगे खैरियत अपनी, तो दिल मे छुपे दर्द को समझेगा कौन.. कुछ लम्हे तो निकालो बस खुद के लिए, ओरों के लिए तो कब तक रहोगे मौन.. भारत मत सोच
यह सच ही तो है दिल के उद्गम से आँखों के विस्तार तक एक निर्झरिणी प्रवाहित होती रहती कभी खुशी कभी दर्द में भींगी अश्रु - नीर से लबालब भरी परन्तु हैं कुछ इंसान ऐसे भी जिनके पलकों पर रुक कर गुम हो जाती है बहती नदी बूंदे
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