इक़रार
0करोना से बचने के किये सारे पूर्वोपाय
फ़िर भी हो गया संक्रमित बना असहाय
नौन तेल लकड़ी कमाना बना बस बहाना
चिड़िया चुग गई खेत अब क्या पछताना
पूरे बदन में ऐसा ताप जैसे उठ रहे शोले
कसमसा रहा अंग अंग लब कुछ ना बोले
तड़पते फेफड़ों में अटक सी गई जैसे सांस
मेरा ख़ुदा रहमान लगाए बैठा उसी पे आंस
हर जीव को है मौत आनी आज नही तो कल
चार दिन की कहानी मस्ती में निकल गए पल
जीवन मृत्यु तेरे हाथ दे दाता कुछ और साल
सुधार सकू गलतियां पूछूं अपनों गैरों का हाल
ये जिस्म तो तेरी अमानत ले ले गर तेरी मर्ज़ी
पर एक नज़र करना गौर अपने बंदे की अर्ज़ी
मेरा ख्वाब तो नही, लाया तेरी रेहमत फ़रिश्ता
हरकर पीड़ा जोड़ गया फ़िरसे दुनिया से रिश्ता
अपने घमंड में करता रहा तेरे वुजूद का इनकार
जान पर बन आई तो जाना तुझे करता हूँ इकरार
पापी अब्बास देख चुका अपनी मौत करीब से
चुकाएगा तेरा ऋण जोड़कर रिश्ता हर गरीब से