ईश्वर सीधे सीधे समझ नहीं आता
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बेटे को मैं समझाऊँ ईश्वर
सीधे सीधे
नहीं हो सकता
घर से निकलते ही पथ पर
जो मंदिर शिव का
कुछ और कदम चलकर
एक पेड़ पीपल का
प्रतीक ब्रह्मा का
वह नहीं करता ध्यान उनका
न करता स्पर्श
साथ चलते हुए उसके
आज मुझे कहना पड़ा था
उसे निष्क्रिय देख
ये चीज़ें
ईश्वर का ध्यान दिलाती हैं
आज मैं
उसे छोड़ने गया था बस तक
बस पकड़ने से पहले
उसने पैर छुए थे मेरे
गाल अपना
कर दिया था मेरी तरफ
चुम्बन के लिए
होता ऐसा है
बच्चे निकल जाते हैं
भविष्य बनाने
माता पिता रह जाते हैं वहीं पर ही
धीरे धीरे छूट भी जाते हैं
ईश्वर को समझ लेते हैं खुद ही
याद आता है जब जब ईश्वर
तब तब चले आते हैं मिलने मातापिता से .