खामोशी का जहाँ बहुत आबाद सा है ।
0हर एक दिशा बहुत खामोश सी है,
हर एक मंजर बहुत चुपचाप सा है;
शांत आज ये सारी हवाऐं भी है,
खामोशी का जहाँ बहुत आबाद सा है ।
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मंजिलें रास्तों की मोहताज नहीं है अब,
हर तरफ अकेलों का समाज ही है अब;
क्यूँ दिखावों से अब इतना लगाव सा है,
खामोशी का जहाँ बहुत आबाद सा है ।
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तकलीफ बनती जा रही सब सच्चाईयां है,
बोझ सी लगने लगी अपनी ही परछाइयां है;
क्यूँ ठहाकों का मौसम अब गुमनाम सा है,
खामोशी का जहाँ बहुत आबाद सा है ।
shandaarjabardast :-).
बहुत सुंदर.....
तकलीफ बनती जा रही सब सच्चाईयां है,
बोझ सी लगने लगी अपनी ही परछाइयां है;
क्यूँ ठहाकों का मौसम अब गुमनाम सा है,
खामोशी का जहाँ बहुत आबाद सा है ।.
Too Good Poem....Keep Writing.....
gud yr.
A great lines of poem...