Khamoshi shabdo ki / ख़ामोशी शब्दों की.......
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ख़ामोशी शब्दों की.......
खामोश है खुदा से आज बात क्या ज़िक्र भी करना ना चाहे,
उम्मीदों ने बांध रखा था अब टूट कर बस बिखरना चाहे,
मंजिल का रास्ता कही गुम है सुनी राहों में बस सहारा चाहे,
क्या कहा और क्या सुना भूल दिल बस गुमसुम रहना चाहे
यादों का साथ भी है और आखों में आसूं अरमा नम कर जाये,
मीलों दूर है कोई पास नहीं मगर सोच एहसास कुछ खास दे जाये,
जाने वो अनजान की भूल थी जो अपना बना फिर भूल ना पाये,
शब्द सारे जैसे गुम है कही जो बयां करना है पर लिख ना पाए,
समय का ही कसूर है जो आकर याद सा बनकर गुजर गया
कुछ गहरे और अजीज लम्हो को जैसे जिंदगी में भर गया,
मन्नते अब झूठ सी लगे जाने कहाँ मेरा खुदा खो गया
सभी खूबसूरत यादो को जैसे हसीन सपना समज सो गया
झलक है दूर परछाई आखों से मिले न कोई छोर उसका,
सिमट कर बैठा उदास दिल उड़ान भरना चाहे मन उसका
सब कुछ है आप में बस किस्मत नाम रख दिया उसका
ख्वाबो को कर जुदा जिंदा है तू बस ख्याल रख उसका
