किसी बाग के कांटे नहीं कलियां है बेटियां।
2हर घर में छा जाती है वीरानीयत सदा।
किसी बाग के कांटे नहीं कलियां है बेटियां।।
मां की सहेली पापा की है लाडली वही।
हर लफ्ज़ की मुस्कान होती है बेटियां।।
हे दुर्गा गायत्री है सरस्वती वही।
लक्ष्मी के कदम घर में लाती है बेटियां।।
है बाग की कलियां यही इन्हें मेला मत करो।
इस उपवन समाज में बहार बेटियां।।
देखो ना सताए यह अश्क की आंख में।
किसी फूल सी कोमल होती है बेटियां।।
घर से हो विदा मगर दिल में रहती हैं।
जिनके लिए पराया धन होती है बेटियां।।
यह है कली कोमल किसी उपवन बहार की।
मत छेड़ो बनके भंवरे यह चंचल है बेटियां।।
वह यादें उसकी आंख से आंसू बन गिरे।
जब भी विदा हो घर के आंगन से बेटियां।।
बाबुल की गली छोड़ कर पिया के घर चली।
दो दो कुलों को रोशन करती है बेटियां।।