Khwaab Ko Saath Milkar Sajaane Lage
0ख़्वाब को साथ मिलकर सजाने लगे घर कहीं इस तरह हम बसाने लगे कर दिया है ख़फ़ा इस तरह से हमें मान हम थे गए फिर मनाने लगे ~ मुहम्मद आसिफ अली
ख़्वाब को साथ मिलकर सजाने लगे घर कहीं इस तरह हम बसाने लगे कर दिया है ख़फ़ा इस तरह से हमें मान हम थे गए फिर मनाने लगे ~ मुहम्मद आसिफ अली
अपनी क़िस्मत को फिर बदल कर देखते हैं आओ मुहब्बत को एक बार संभल कर देखते हैं चाँद तारे फूल शबनम सब रखते हैं एक तरफ महबूब-ए-नज़र पे इस बार मर कर देखते हैं जिस्म की भूख तो रोज कई घर उजाड़ देती है हम रूह-ओ-रवाँ को अपनी जान
*मेरी जान* वो है सिर्फ मेरा..... ये हम सरे आम लिखेंगे मेरी जान तुझे हम खुदा का नायाब इनाम लिखेंगे तेरे चेहरे को लिखेंगे बग़दाद की हसीन सुबह हम तेरी हसीन ज़ुल्फ़ों को नजफ़ की ढलती शाम लिखेंगे दफ़अतन जो कोई पूछ बैठे आखरी ख़्व
जो खुद से मिला दे जो खुद से प्यार करना सिखा दे जो दुनिया को देखने का नजरिया खूबसूरत बना दे जो हमे खुद को समझना सिखा दे जो हमे खुद की अहमियत बता दे वो होता है प्यार मेरे लिए तो यही है प्यार की परिभाषा दूसरो के लिए कुछ
तुम्हें हक हैं मेरी रूह से जुड़ जाने का , तुम्हें हक है मुझे अपने दिल के राज बताने का । तुम्हें है हैं मुझे अपनी नाराज़गी जताने का, तुम्हें हक है मेरी उदासी की वजह जानने का । तुम्हें हक है मेरी मुस्कान की वजह बन जाने
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