महकाएँ परिवेश
0खिले हुए फूलों से करते
सभी लोग हैं प्यार,
निकट रखा करते सीने के
इन्हें बनाकर हार।
इनका मोहक रूप जगाता
मन में नव उल्लास,
और गंध से होता अनुपम
सुख का भी आभास।
देवों के सिर इन्हें चढ़ा हम
जतलाते आभार,
छुपा हर्ष मन का बतलाते
फूलों के उपहार।
औरों को खुशियाँ देते हैं
महक महक कर फूल,
इनकी रंग भरी छवियों में
सब दुःख जाते भूल।
हम भी फूलों - से खुश रहकर
अपना सुख दें बाँट,
मुरझाए मुखड़ों की कुछ लें
उदासियों को छाँट।
मन के भीतर शूल - चुभन के
सहकर सारे क्लेश,
फूलों - सी हम हँसी लुटाकर
महकाएँ परिवेश।
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लेखक : सुरेश चन्द्र "सर्वहारा"