मुस्कुराने लगती है खुशियां, जब आता दिन ये हर साल है... रिश्ता जुड़ा एक अंजाने से, जो जीवन संगिनी मेरी आज है... रौशन है घर-बार मेरा जो, सब उसकी ही बदौलत है... छोड़ के अपना सबकुछ उसने, मेरे परिवार को अपनाया है... सास-ससुर को म
"Naa koi Khaani hai Naa koi Ruhaani hai... ... Beete hue kl ki Kuch beeti hui Zindgaani hai... ... Subaah me jise Chaaha Shaam bhi uski Deewani hai... ... Aarzoo bhi paagl hai Kuch meri chaaht bhi Mstaani hai... ... Meri Gurbt meri Sohbt tum hi ho Bs itni si Khaani hai bs itni si Khaani hai..."
दोहे "सिन्दूरी परिवेश" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') सालगिरह पर ब्याह की, पाकर शुभसन्देश। जीवन जीने का हुआ, सिन्दूरी परिवेश।। -- कर्म करूँगा तब तलक, जब तक घट में प्राण। पा जाऊँगा तन नया, जब होगा निर्वाण।। -- आना-जाना
दोहागीत "पाँच दिसम्बर-वैवाहिक जीवन के तैंतालीस वर्ष पूर्ण" मृग के जैसी चाल अब, बनी बैल की चाल। धीरे-धीरे कट रहे, दिवस-महीने-साल।। -- वैवाहिक जीवन हुआ, अब तैंतालिस वर्ष। जीवन के संग्राम में, किया बहुत संघर्ष।। पात्र
आज मै देता हूँ उस ईश्वर को बधाई जिसने इतनी सुंदर ,जोड़ी है बनाई प्रेम ,विश्वास,सर्वागीण विकास से दुनीया तुम दोनों की खूब सजाई रवी तुम्हारी मांग में युँही चाँद सितारे भरते रहें जीवन में सुखमय सपने सदा सदा सवंरते रह