मेरी दादी
0मेरी दादी
_______________
दादी से था रहा महकता
मेरे बचपन का संसार,
मम्मी पापा से भी ज्यादा
वह करती थी मुझसे प्यार।
मुझे प्रेम से पास बिठाकर
रोज खिलाती थी वह चीज,
कितनी कितनी मैं जिद करती
पर न उसे आती थी खीज ।
कभी दिखाई मैं ना पड़ती
हो उठती दादी बेचैन ,
चाह रही उसकी बस यह ही
रहूँ साथ उसके दिन रैन ।
गोदी में मुझको दुबकाती
जब मम्मी की पड़ती मार,
और कभी मेरे रोने पर
रोती खुद मुझको पुचकार।
पापा जब भी मुझे डाँटते
दादी करती बीच बचाव,
कहती - मेरी मुनिया है यह
अतः न इस पर खाओ ताव।
जहाँ कहीं जाती थी दादी
ले जाती मुझको भी साथ,
सबसे वह पहचान कराती
रख मेरे माथे पर हाथ ।
जब मैं थोड़ी बड़ी हुई तो
दादी रहती थी बीमार,
बुझी बुझी आँखों से तब भी
रहती थी वह मुझे निहार ।
कभी-कभी दुर्बल हाथों से
मुझे बुलाकर अपने पास,
कहती - मेरे जाने पर तू
होना बच्ची नहीं उदास।
कभी बाँह में भरकर मुझको
सीने से लेती थी भींच,
बूढ़ी आँखें तब दादी की
मुझे अश्रु से देती सींच।
नहीं रही दादी अब मेरी
शेष रह गई उसकी याद,
कभी प्रेम ना पाया ऐसा
दादी के जाने के बाद ।
*******
- सुरेश चन्द्र "सर्वहारा"
It's very sad poem on grandma.
Awesome it is. I miss my dadi a lot. I've spent around 20 years of mine with her. Very Nice poem...