माँ ममता की खान
0माँ ममता की खान गागर अमृत रस भरी,माँ ममता की खान थाह खोजते थक गए,सच मानो इन्सान माथा जब माॅ चूमती,होऔलाद बिभोर पुलकित तन मन नाचता,जैसे वनमें मोर सहस्त्र किरन कीरोशनी,माँ चौदहवीं चाँद घोर अमावस रजनि का,तार तार उन्
माँ ममता की खान गागर अमृत रस भरी,माँ ममता की खान थाह खोजते थक गए,सच मानो इन्सान माथा जब माॅ चूमती,होऔलाद बिभोर पुलकित तन मन नाचता,जैसे वनमें मोर सहस्त्र किरन कीरोशनी,माँ चौदहवीं चाँद घोर अमावस रजनि का,तार तार उन्
*ग़ज़ल* *(on माँ)* हालात के तूफ़ान जब मुझे कभी सताने लगे है लफ्ज़ दुआ के फिर माँ के लबों पर आने लगे है गरीबी में भी हमें पालती रही शहज़ादों की तरह अपना नया जोड़ा बनाने में माँ को ज़माने लगे है उठाए जो हाथ माँ ने दुआओं में मेरी खा
*ग़ज़ल* *(on माँ)* ज़माने की ठोकरें हम खाते रहे मगर चलते रहे माँ की खातीर हालात की तपीश में जलते रहे माँ की तालीम ने भटकने ना दिया कभी राह से सब थे बिगाड़ने को बेताब मगर हम संभलते रहे जो रखे क़दम घर से बाहर कमाने की खातीर अलफ़ा
मांँ तो मांँ होती है, कौन जाने यह ? वह कब क्या होती हैं , हर पल तो कल्याणी होती हैं, ममता से अपनी झोली भर देती है, आंँचल से अपने छाँव देती है, सुख की देवी दुख हर लेती हैं, बच्चे उनको प्राणों से भी प्रिय होते हैं, आशीर्वाद
माँ तुम मुझे... बहुत याद आती हो, आंखों में मेरे... तुम नीर ले आती हो। जब ससुराल में सासू माँ की डांट पड़ती है। तवे पर आटे की रोटी ना जब गोल बनती है। तब माँ वह... रसोई की तेरी सीख याद आती है, माँ तुम मुझे... बहुत याद आती हो। माँ
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