Bulandi
0आसमाँ की कश्तियों में
क्या यूँ सवार होता ,
राह थी मुश्किल तो क्या
दिल जाँ निसार होता ,
राह थी आसाँ तो क्या
जिंदगी का फलसफाँ
यूँ हसीं ,और इस कदर
क्या कभी गुलजार होता,
चल रहा था जिंदगी में
यूँ कदम बढाकर कभी ,
जज्बे को रख दिल में
और यूँ मुस्कुराकर कभी ,
न था ये आसाँ कभी
तूने यूँ कर दिया ,
सारे जहाँ की आग को
सीने में अपने भर दिया ,
आज जो भी है तू
दिल का ये पैगाम है ,
इस जहाँ और आसमाँ में
बस तेरा ही नाम है
बस तेरा ही नाम है !
द्वारा - सुनील कुशवाह