Kyon Zamaane Se Darunga Dosto
0आईना हूँ सच कहूँगा दोस्तो
क्यों ज़माने से डरूँगा दोस्तो
झूठ का मुझको चलन भाता नहीं
मैं जहाँ भर से लडूँगा दोस्तो
हर नज़र मुझ पर टिकी आकर बुरी
टूटकर इक दिन रहूँगा दोस्तो
बात अखरेगी ज़माने को बहुत
मैं बहारों में खिलूँगा दोस्तो
पाँव के छाले भरेंगे आह कल
मैं पहाड़ों पर चढूँगा दोस्तो
है मुक़द्दर में लिखा चलना सदा
मैं ठहर कर क्या करूँगा दोस्तो
राह अनजानी न कोई हमसफर
बस अकेला ही चलूँगा दोस्तो
तुम मुझे आवाज़ दोगे जब कभी
मैं तुम्हें आकर मिलूँगा दोस्तो
राकेश दुबे "गुलशन"