मुर्खतंत्र
0।।।।।पहले वाले कविता को एडिट कर के नया रूप दिया और शीर्षक भी बदल दी है।।।।।।
मुर्खतंत्र
बहुत ही गरमा गरम है गाँधी के मैदानो में,
हँस रहे है ऐसे जैसे खुद ने तीर चलाई है,
अब्दुल,केजरी,राहुल भी,आए एक कमानों में,
हुड्डा आए,सरद आए,शीला "दी" भी आई है,
अपेक्षित "तब" "जब" उपेक्षित ,है नैयनो में"
आनेवाला "सम्यक"का "संपर्क" जो गरवराई है,
क्या बताऊ "संसूचित" की छोटी सी बयानों में,
घर से आए याद करके पर "सूचित" सुनाई है,
क्या सच क्या झूठ है राजनीति,के दीवानो में,
इनकी ही बातों से अब दिख रहा इक खाई है,
सब घुसे आज यहाँ है लोकतंत्र के मयानों में,
हँस रहे आज इस कदर की सहोदर ये भाई है,
झूठे लगाते है नारे ये वोटों के खलिहानो में,
बात आई आज शपथ की,तो बंडी सिलवाई है,
न जाने क्या दिख गया है छोटे ही जवानो में,
हाँ कोसते रहो "योद्धा" इसी में तेरी भलाई है,
"लोकतंत्र मूर्खों का शासन"छप चूका जो पन्नों में,
प्रमाणों की बात कहाँ वो जो कसमे भी दुहराई है,
लोकतंत्र भी रो दिया आज "कर्पूरी" के मैदानों में,
सच में जनता ने ही जनता को यहाँ रुलाई है,
।।।।।।लालजी ठाकुर।।।दरभंगा बिहार।।।
