सृष्टि की लीला
0जहॉं डाल-डाल पर खिला फूल, अपनी सौन्दर्यों से सबको लुभा रहा। वहीं दूर झूमता काले मतवाले भौंरे, इसकी रमणीयता से बेकाबू हो रहा। देखते ही देखते भौंरे फूलों के पास पहुॅंचा। पहले मंडरा कर फूलों का विश्वास जीता। फिर गु
जहॉं डाल-डाल पर खिला फूल, अपनी सौन्दर्यों से सबको लुभा रहा। वहीं दूर झूमता काले मतवाले भौंरे, इसकी रमणीयता से बेकाबू हो रहा। देखते ही देखते भौंरे फूलों के पास पहुॅंचा। पहले मंडरा कर फूलों का विश्वास जीता। फिर गु
अडिग अमिट मै साहसी प्रचंड घोर प्राकृमि मिटा सका नही मुझे झुका सका नही मुझे देखो सफ़र के धीर राह को रात के प्रमाद को सैनिक के वो मिसाल को मंत्र सा वह तार को भानु के प्रताप मै शीत के प्रहार मै अंकुश लगा सका हु प्राकृ
आज तू विकल नहीं है मेरे लिए क्योंकि मैं विद्यमान हूं इस बेला में सतत करता है अनुपयुक्त व्यवहार इक वासर विलापित होगा तू इसके लिए मत कर इसके साथ तू अनुपयुक्त व्यवहार नहीं तो तुझसे प्रमान इतना परे हो जाएगा या फिर तु
रोला छंद रवि को छिपता देख, शाम ने ली अँगड़ाई। रक्ताम्बर को धार, गगन में सजधज आई।। नृत्य करे उन्मुक्त, तपन को देत विदाई। गा कर स्वागत गीत, करे रजनी अगुवाई।। सांध्य-जलद हो लाल, नृत्य की ताल मिलाए। उमड़-घुमड़ कर मेघ, छटा म
आओ मिलकर पेड़ लगाए, पर्यावरण को स्वच्छ बनाए। यह सन्देशा सब तक पहुंचाए, आओ मिलकर पेड़ लगाए। खुद भी पेड़ लगाना है और, लोगों से भी लगवाना है। एकजूट हो कर हम सबको, सोया समाज जगाना है। हम मिलकर ऐसा कदम उठाए, जिससे ज्यादा पेड़
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