दूर सागर से आर्द्र हवा आई है उमड़- घुमड़ कर आए काले बादल बरखा रिमझिम -रिमझिम स्नेह बूँदें बरसा रही धरा के कण -कण को सींचती नव जीवन का संचार कर रही मेघ आच्छादित नभ को दृष्टि उठा कर देख लो कुछ क्षण प्रकृति से जुड़ कर देख ल
सुजान छंद (पर्यावरण) पर्यावरण खराब हुआ, यह नहिं संयोग। मानव का खुद का ही है, निर्मित ये रोग।। अंधाधुंध विकास नहीं, आया है रास। शुद्ध हवा, जल का इससे, होय रहा ह्रास।। यंत्र-धूम्र विकराल हुआ, छाया चहुँ ओर। बढ़ते जाते वा
ठंडी ठंडी वाली शाम में सूरज को ढलते देखा है सूरज के हल्के छाये में पंछियों को उड़ते देखा है हरे भरे मैदानों में गायों को चरते देखा है इस आसमान में वापस पंछियों को घर जाते देखा है इस ठंडी शाम में लोगो को बाहर घूमते
चले थे चांद पर घर बनाने कुदरत ने किया ऐसा कहर की अब हमे..... अपने ही घर में डर लगता है ! अपनों* को कुचल कर चलना आदत बन गई थी हमारी दगाबाजी बन गई थी फीदरत हमारी अब खुद के कर्मो का ही यह खंजर लगता हैं की अब हमे ..... अपने ही घर मे