|। नवोदय : एक याद ।| by PANKAJ CHOUREY NAVODAYAN
0हां , मैं थोड़ा लेट आया था जन्नत में
शुरू में बहुत अजीब लगा
कभी भईया की डांट
कभी हाउस काउंटिंग में पीछे रह जाना
सुबह जल्दी पी.टी. में जाना
न घर का खाना
न घर का प्यार
मां हर बार यही कहती कॉल पर ,
रोना मत बेटा , अच्छे से पढ़ना
कई बार तो सोचता
यार छोड़ दूं ये नवोदय
चला जाऊं वापस अपने घर
कम से कम अपनो से तो दूर नहीं रहूंगा
अब नवमी कक्षा में थे ,
अब जिंदगी को थोड़ा तो समझते थे
फिर सोचा , सब अपने ही तो हैं
यहां हर दोस्त की अलग स्टोरी थी
वैसे तो सब अपनी स्कूल के टाॅपर्स थे
यहां कोई टाॅपर नहीं
यहां हर टीचर , दोस्त जैसे थे
साथ रहना , साथ खाना
कब घुल-मिल गए ,
पता ही नहीं चला
कब भईया कहते कहते खुद भईया बन गए
पता ही नहीं चला
अब इस दुनिया को अलविदा कहने से डर सा लगता था
वक्त यूं बीत जाएगा , नहीं सोचा था
हमें यूं बिछड़ना पड़ेगा , नहीं.......
हास्टल की मस्तियां ,
वो यारों संग क्लास में उटपटांग हरकतें
वो दाल पूरी , पनीर की सब्जी
आज ये सब नहीं है , पर जेहन में है
एक पंक्ति और...
कब बच्चे से इंसान बन गया , पता ही नहीं चला

no words to exaplain feelings after reading .
bs yaade taja ho gaiii ✍.