Panne Badal Gaye
012 12 2015 के फ़िलबदीह से।।
अपनी नजर उठाइ दिवाने बदल गए,
दिख तो वही रही पर चेहरे बदल गए,
हम ज़िन्दगी की राह में मजबूर हो चले,
लम्हे यहाँ वो आज तुम्हारे बदल गए,
देना जख्म मुझे है अगर सच यहाँ तुझे,
अरमा तो सच वही पर लहजे बदल गए,
जब खुश वो थी यहाँ तब खुश मैं भी था यहाँ,
कोशिश तो खूब हुइ ,इरादे बदल गए,
बहते थे रोज साथ हा दरया में हम कभी,
दरया मगर वही है किनारे बदल गए,
शिकवा नहीं करु तो शिकायत तु मत करो,
दुनिया में क्यों नसीब ये अपने बदल गए,
दिन में कभी अजीब वो सपने कभी दिखा,
नजरे मेरी वही बस सपने बदल गए,
हमने पढ़ा किताब जो वर्षो यहाँ कभी ,
खोलू वही किताब तो पन्नें बदल गए,
लालजी ठाकुर
