कभी मैं महीनो नही लिखती
0कभी मैं महीनो नही लिखती कभी हर दिन दो कविताएं लिख देती हूं मन कहता है लिख दो अपने मन की बात तो आधी रात को भी मेरी कलम लिख देती हैं मन नही करता जब लिखने का मैं कर लूं कोशिशें कई बार इतनी कोशिशों के बाद भी तब कुछ लिख नही
कभी मैं महीनो नही लिखती कभी हर दिन दो कविताएं लिख देती हूं मन कहता है लिख दो अपने मन की बात तो आधी रात को भी मेरी कलम लिख देती हैं मन नही करता जब लिखने का मैं कर लूं कोशिशें कई बार इतनी कोशिशों के बाद भी तब कुछ लिख नही
बेवजहा मैं यू घूमता रहा न जाने मैं क्या ढूँढता रहा तन्हा था मैं फिर भी मैं दूसरों के साथ न जाने क्यों घूमता रहा अकेला था मैं उसमें न जाने क्या ढूँढता रहा फिर भी मैं अकेला ही रहा और अकेला ही मैं घूमता रहा जब तू नही था
गुस्से में जब मैंने चिल्लाया, माँ ने कहा शांति शांति शांति। बच्चे शोर मचा रहे थे कक्षा में, अध्यापक ने कहा शांति। सत्संग में गुरूजी बोले , ॐ शांति शांति शांति। आखिर क्या है ये शांति? वातावर्ण में सन्नटा छा जाये, क्
राम को रहीम से और रहीम को राम से शिकायत है। होनी भी चाहिए क्योंकि ये दोनों बरसों-बरस के साथी रहे हैं। ऐसे साथी जिनको एक-दूसरे से अलग कर पाना मुश्क़िल है। उतना ही मुश्क़िल, जितना ख़ुद को ख़ुद से अलग करना। मगर आज राम ने रह
हर आदमी भटकता है इस जहां में, कभी धरती पर कभी आसमां में, उस बला की तलाश में, जिसे सुकून कहते हैं तेरी मेरी जुबां में। मिल सकता गर उधार में, मैं भी ले लेता मन भर झोली पसार के, या फिर मोल भाव करता उसका बाजार में, चुरा सकता
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