पेड़ों की व्यथा।
0बेदर्दी मत काट बदन मेरा दुखता है।
मार कुल्हाड़ी काट रहा है
टुकड़े - टुकड़े बाँट रहा है,
मेरी छाया से क्यों वैर?
चाहूँ तेरी हरदम खैर।
निर्मोही रुक, देख सलिल तेरा सुखता है।
बेदर्दी मत काट बदन मेरा दुखता है।
पहले धड़ ऊपर कटवाया
फिर जड़ काट सुखाई काया,
आँसू टपके डाली - डाली
हुई तिरोहित भी हरियाली।
पेड़ों से मानव तू कटुता क्यों रखता है?
बेदर्दी मत काट बदन मेरा दुखता है।
हवा शुद्ध मुझसे होती है
घन से भी गिरता मोती है,
काट हमें मरु किया धरा भी
प्यार न मुझसे किया जरा भी।
अपने उर में भरा हुआ विष क्यों रखता है?
बेदर्दी मत काट बदन मेरा दुखता है।
वन्य -जीव का तू अपराधी
संख्या हो गई इनकी आधी,
हरित धरा अब चीर-विहीन
रे पागल मत आँचल छीन।
कर मत अब संघात बदन मेरे चुभता है।
बेदर्दी मत काट बदन मेरा दुखता है।
दूषित होगा सारा भूतल,
सूखेगा पल-पल सरिता-जल,
धरती उगलेगी अंगारे
झुलसेंगे नर, पशु बेचारे ।
कर कोशिश मिल सभी अगर वन अब बचता है।
बेदर्दी मत काट बदन मेरा दुखता है।
दयाहीन नर वृक्ष लगाले
सोया अंतर उसे जगा ले,
धरती पर भर दे हरियाली .
खग चहकें पेड़ों की डाली।
बूँद - बूँद मिलने से ही सागर बनता है।
बेदर्दी मत काट बदन मेरा दुखता है।
अनिल मिश्र प्रहरी।
Adbhut rachna...