पिता द्वारा बेटी को सीख....
3पिता द्वारा बेटी को सीख......
जितनी नाजों से थी पली
अपने पिता की नन्ही कली
जिस आँगन में खेलती थी
गुड्डे-गुड़ियों का खेल
आज वो बेटी दुल्हन बन
बाबुल का घर छोड़ चली
बेटी को विदा करते वक़्त
पिता के आँखों से बह रही अश्रु की धारा
आज उससे हो रहे है दूर
जो थी उनकी आँखों की तारा
विदा करते वक़्त बेटी को
सिखा रहे है उसके पिता
बेटी,तेरे पति है राम जैसे
और तुमको बनना है उनकी सीता
जाकर तुम ससुराल में
रखना सबका ध्यान
छोटे-बड़े सबों का
करना हमेशा सम्मान
हर वक़्त ससुराल में
ये रखना हमेशा ख्याल
मेरे दिए हुए संस्कारो पर
कभी ना उठे कोई सवाल
सास-ससुर और ननद-देवर के
पूरे करना हर सपने
आज से वे ही है तुम्हारे अपने
तुझे विदा करने को तो
नहीं करता है मेरा मन
पर मैं भी क्या कर सकता हूँ
हर बेटी तो होती है पराया धन.....
very very nice poem h yar mast likhe ho.
Verry nice poem.
बहुत ही सुंदर रचना .......
mast poem h very nice ......
bahut hi sunder kavita h ,.......
very very nice poem really I like it .......