प्रभात के पंछी
0प्रभात के पंछी
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जाओ तुम भवकाल के
रौशन चिरागों की ओर।
मंजिल तुम्हें है पुकारती,
थामे कामयाबी की डोर।
कर्म से रखना ज्वलित,
उम्मीद का एक दिया।
श्रम बिंदु तुम्हारे तन -मन के,
करते रहेंगे यह क्रिया।
पलके बिछाए बैठी हैं,
भविष्य की उज्ज्वल राहें।
ख्वाबों की खुशबू समेटे,
हिंद की व्याकुल बाहें।
खुद को तुम करना बुलंद,
ज़र्रा नहीं आफताब हो,
हरपल इस नन्हे से ,
खुशियों में लिपटे ख्वाब हों।
ज्ञान गीत का करके गुंजार,
उन्नत भवराग तुम बनो।
ऐसे जगाना इस जग को,
अमर,चेतन तन मन हो।
दिल ये कहता है तुम्हें,
कोई भी कर्म क्षेत्र हो,
रहे लगन मन में सच्ची।
निशदिन मिले क्षितिज पर,
तुम उस प्रभात के हो पंछी।
तुम उस प्रभात के हो पंछी।।
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ममता भारद्वाज "मधु"
Dedicated to
To my dear students
Dedication Summary
मेरे सभी विद्यार्थियों के उज्ज्वल भविष्य के लिए ढेर सारी शुकामनाएं।
Very good.