प्रेमगीत सुनाऊँ कैसे
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प्रेमगीत सुनाऊँ कैसे
उनकी पीर देखकर अपनी कहानी जताऊँ कैसे
नंगे पैर चले जा रहे भूखे बच्चे अकुला रहे
ऐसी व्यथा में अपनी अभिव्यंजना गाऊँ कैसे
पोटली सिर पर, माथे पर पसीना बेबस आँखें खोज रहीं हैं दर अपना
आँखों में नीर भरा है दुख की बदरी हटाऊँ कैसे
प्रेमगीत सुनाऊँ कैसे
हाड़ माँस के प्राणी वो भी सबकी तरह एक जीवन के स्वामी वो भी
उनके हाथों की लकीरों से ये कठिन पल मिटाऊँ कैसे
एकटक उन्हें ताकती आँखें विवशता भरी हैं मेरी साँसें
निर्जन डगर पर चले जा रहे जीवन की चाह में आगे बढ़े जा रहे
स्वयं को भूल उनके लिए हाथ बढ़ाऊँ कैसे
प्रेमगीत सुनाऊँ कैसे
ओ ! मानवता के स्वामी, हे ! प्रकृति के रक्षक
खबर तुझे भी है पर विवश नहीं है तू शायद
अपनी गलतियों की क्षमा मांगते हे ! करुणा के सागर
कहीं जीवनदायनी शक्ति बनकर आ जा
तुझ बिन और किसी के आगे शीश नवाऊँ कैसे
प्रेमगीत सुनाऊँ कैसे ।