पुराने रिश्ते
0जो हमने अपनो की खातिर गवा दी थी
तोड़ डाली अपनों के बीच की दीवार
जो कभी वक़्त ने बना दी थी
सोचा लौट आएंगी वहीं खुशियां
जो हमने अपनों की खातिर गवा दी थी
भर दिया उन जख्मों की दरारो को
जो अपनों ने झूठ से बना दी थी
सोचा फिर जलाऊं भरोसो की मशाल
जो हमने अपनो की खातिर भुजा दी थी

Devesh Patel
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