प्यारा बचपन
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समय की बहती धारा में,
गुम हुए हमारे अलहरपन।
चलो ढूँढ़कर लाते हैं,
फिर से अपना प्यारा बचपन ।।
गुड्डे-गुड़ियों की शादी में,
हम रहते थे बेफिक्र मगन।
कागज की कस्ती हाथ लिए,
ख्वाबों से भरे बेबाक नयन ।।
चलो ढूँढ़कर लाते हैं,
फिर से अपना प्यारा बचपन ।।
आँखमिचौली, चोर-सिपाही,
हम करते थे हर खेल चयन।
क्या मजे थे गिल्ली-डंडे में,
मुट्ठी में कैद संपूर्ण गगन ।।
चलो ढूँढ़कर लाते हैं,
फिर से अपना प्यारा बचपन।।
टोली संग बढ़ते आगे हम,
उड़ती तितली संग पार्श्व गमन।
कभी खेतों में, कभी गलियों में,
भर स्वर कोयल संग, झूमे मन।।
चलो ढूँढ़कर लाते हैं,
फिर से अपना प्यारा बचपन ।।
हर सुबह खिली खुशियाँ अनंत,
माँ की लोरी संग रात शयन।
अब यादों में ही दिखते हैं,
पापा के बाँहों का झूलन ।।
चलो ढूँढ़कर लाते हैं,
फिर से अपना प्यारा बचपन।।
मिट्टी की सौंधी खुशबू में,
रहते थे सने संपूर्ण बदन।
बना घरौंदा अंबर नीचे,
क्या सजता था अपना गोबन।।
चलो ढूँढ़कर लाते हैं,
फिर से अपना प्यारा बचपन ।।
अब अपनी जिम्मेदारी में,
उलझे, डूबे करते चिंतन ।
आँखों से मोती झड़ते हैं,
कितना प्यारा था वो बचपन ।।
चलो ढूँढ़कर लाते हैं,
फिर से अपना प्यारा बचपन।।
नवीन कुमार
पुष्प विहार, नई दिल्ली
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