रब का रूप है पिता.....
0रब का रूप है पिता तू मुझमें है तेरा ही स्वरूप
मोड़ देता है तू रुख हो चाहे कोई मुश्किल या धूप
जगत है रब का मगर पिता तूने ही है मुझे बनाया
चैन से सोने दिया मुझे मगर खुद रात जाग कर बिताया
दर्द तुझे भी होता है मगर आंसू को मुझसे छुपाया
मैं टूट कर बिखर ना जाऊं खुद आकार मुझे सीने से लगाया
पागल है बेखबर जमाना जो रब के लिए व्यर्थ समय गवाता है
सच कहूं तो रब तेरे आगे तनिक घड़ी भी नहीं टिक पाता है
जीवन में मेरे हर कोई आता है और जाता है
मगर एक तू है जो हर पल मुझे जीना सिखाता है
खुद भूखा हो मगर पहले मुझे खिलाता है
भटक ना जाऊं मैं अपनी राह से हार मान कर शायद इसीलए
मेरे नाकामयाबी पर भी उम्मीद ना खोने का दिलासा दिलाता है
ख्याल तो ऊंचे महल और महंगी कार का तुझे भी आता है
मगर मेरे सपने पूरे हो इसीलिए खुद का सपना भूल जाता है
झू्ठ नहीं ये सच अमर है तू आत्मा नहीं मेरा परमात्मा है
अगर कोई संतान भूल जाए तुझे तो समझो उसका खात्मा है
रब भी जानता है कि तेरे बिना ये जमाना
नींद में देखी हुई कोई अधूरा सा एक सपना है बस
तू ही एक अपना है बाकी तो कच्छी धागों से बनी कल्पना है