ग़ज़ल (नहीं जो चाहते रिश्ते)
0ग़ज़ल (नहीं जो चाहते रिश्ते) (1222 1222 1222 1222) नहीं जो चाहते रिश्ते अदावत और हो जाती, न होते अम्न के कायल सियासत और हो जाती, दिखाकर बुज़दिली पर तुम चुभोते पीठ में खंजर, अगर तुम बाज़ आ जाते मोहब्बत और हो जाती। घि
ग़ज़ल (नहीं जो चाहते रिश्ते) (1222 1222 1222 1222) नहीं जो चाहते रिश्ते अदावत और हो जाती, न होते अम्न के कायल सियासत और हो जाती, दिखाकर बुज़दिली पर तुम चुभोते पीठ में खंजर, अगर तुम बाज़ आ जाते मोहब्बत और हो जाती। घि
एक रिश्ता, बेनाम सा, ना हासिल, ना जुदा, ना खोया, ना मिला, फ़िर भी करीब सा, मोहब्बत तो नहीं पर मोहब्बत सा, जरुरी तो नहीं पर जरूरत सा, जाने क्या है और कैसा है, एक रिश्ता, बेनाम सा....
अकेली सी जिंदगी आजकल ना जाने क्यूँ जिंदगी अकेली सी है । सब कुछ होते हुए भी चेहरे से उड़ी ख़ुशी है । आज रिश्तो में सच्चाई कम बनावट की कली सी है । सब अपने साथ है मगर रिश्तो में बड़ी दूरी है । इस दूरी को मिटा पाएंगे ये एक पह
बर्क दिल पे वो गिराते हैं मेरे हुश्न से दिल को जलाते हैं मेरे इश्क ने मशहूर इतना कर दिया लोग अब किस्से सुनाते हैं मेरे मुफलिसी का दौर जब से आ गया आँख अब अपने चुराते हैं मेरे सामने तो हँस रहे दिल खोल के खार छुप-छुपके
अल्लाह के रहमो करम परही है टिकी क़ायनात पत्ता भी नही हिलता बगैर मालिक की इज़ाजत कर्म करना ही है इंसा का धर्म आंधी आये चाहे चले हवा गर्म दिखाई हमारे बागबान ने भरपूर चाहत लगा दी दाव पर अपनी सेहत ओ राहत मालिक करू शुक्र
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