माता- पिता के दरवाज़े
1असफलता जीवन के किसी पन्ने पर अंकित हो सपना सुनहरा कोई टूट कर बिखर जाए नैराश्य के घोर अंधेरों में न खो जाना सपने नए बुन लेने की हिम्मत रखना | गिर कर उठ जाओगे, संभल कदम बढ़ा पाओगे इस बात का हमें पूरा यक़ीन है फिर भी, अकेल
असफलता जीवन के किसी पन्ने पर अंकित हो सपना सुनहरा कोई टूट कर बिखर जाए नैराश्य के घोर अंधेरों में न खो जाना सपने नए बुन लेने की हिम्मत रखना | गिर कर उठ जाओगे, संभल कदम बढ़ा पाओगे इस बात का हमें पूरा यक़ीन है फिर भी, अकेल
हम लिखें कोई पढ़े ये तो जरूरी नहीं... पढ़ भी ले और उसे समझे जरूरी नहीं... समझ अपनी - अपनी है अपना दिमाग, जो लिखें वही समझे जरूरी नहीं... दुनिया बनाई ही ऐसी है रब ने मेरे, दोस्त भी गर बनाओ तो बनेंगे नहीं... गर चाहो फैलाना जहा
सितारों से सजी रात में, वो चांद की चमक। भरा आसमा सितारों से, पर सबकी नजर चांद पर। मानो सितारों का कोई वजूद नहीं। वैसे ही तुझे पाने की चाहत में। खो दी मैं अपना वजूद। माना हुनर था तुझमें बहुत, पर मुझमें भी कम नहीं। पर
अल्ज़ाइमर से संघर्षरत मेरे बाबा एक - दूसरे का हाथ थामकर हम इन अंधेरों को चीर चल पड़ेंगे | यादों के दरवाजे हैं कुछ अधखुले से धूमिल मोटे परदों से ढके हुए आपकी पहचान कोई पूछ ले अगर विचारों के अंतर्द्वंद से विचलित न होना
ग़ज़ल (नहीं जो चाहते रिश्ते) (1222 1222 1222 1222) नहीं जो चाहते रिश्ते अदावत और हो जाती, न होते अम्न के कायल सियासत और हो जाती, दिखाकर बुज़दिली पर तुम चुभोते पीठ में खंजर, अगर तुम बाज़ आ जाते मोहब्बत और हो जाती। घि
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