रिश्ता-ए-भाई-बहन।
0नमस्ते एहसास अपनेपन का ग्रुप परिवार।
मैं सुमित अपनी एक और कविता आप सभी के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं।
आशा करता हूं कि आप सभी को ये कविता बहुत पसंद आयेगी।
कृप्या करके आप सभी अपना प्यार और आशीर्वाद देकर कृतार्थ करें।
कविता: " रिश्ता-ए-भाई-बहन "
इतने चंचल मन को बांधा है एक रेशमी धागे ने,
हंसते खिलखिलाते खुद बंध जाना तोड़ कर बंधन सारे।
क्या देखें कभी पंछियों के पास नक्शे,
जो होते इतने माहिर कि ढूंढ लेते बिन नक्शे रास्ते।
प्राणवायु ना दिखती फिर भी जीवन उसी से ही चलता,
भाई हो कितने दूर फिर भी राज बहनों का ही चलता।
नन्हे हो या मझले हो या हो बड़े भैया,
बड़े चाव से बहनों से राखी तुम बंधवाना।
टूटे ना कभी ये रिश्तो का धागा,
मजबूत ऐसे हमेशा अपना रखना इरादा।
प्यारे-दुलारे भाईयों दूर ना उनसे जाना,
चाहे हो जाए कुछ राखी के बंधन को निभाना।
समाप्त।
सुमित.शीतल