नदी हूँ मैं
0बहती हुई नदी हूँ मैं कहीं पत्थरों के संग अठखेलियां करती कहीं इठलाती तो, कहीं बलखाती आगे बढ़ जाती कहीं सीढ़ी सी उतरती तो, कहीं किसी ढाल से फिसलकर कुछ रुक सी जाती कहीं किसी घाटी में कलकल करती तो, कहीं प्रपात बन सिंहना
बहती हुई नदी हूँ मैं कहीं पत्थरों के संग अठखेलियां करती कहीं इठलाती तो, कहीं बलखाती आगे बढ़ जाती कहीं सीढ़ी सी उतरती तो, कहीं किसी ढाल से फिसलकर कुछ रुक सी जाती कहीं किसी घाटी में कलकल करती तो, कहीं प्रपात बन सिंहना
नदी की पीड़ा। दूषित होकर बहता नदियों का सारा जल। धरती के कण-कण को सींचा ऊसर, समतल या तल नीचा, तृषित जगत् का कण्ठ भिगोकर किरणों से जल लिया दिवाकर, तट शोभित होते शहरों से अमित प्यार जग का लहरों से। अब निर्मल जल को मैला
नदी _____________ छोड़ कर पीछे रेत के ढेर और रूखे सूखे किनारे नदी तो खुद ही न जाने कहाँ बह गई ! दिखते हैं अब मरे हुए घोंघे तटों पर बैठे उकताए हुए बगुले, मछली कछुओं की तो बस याद बाकी रह गई। कितना किया हमने प्रदूषण, जल-वस्त्रों
Teri god mein aakr main gote chaar lgata hun khud ki thkaan ko mitaakr dhnya main ho jaataa hun teri lhron se drtaa hun kyonki tair nhi main pata hun tere sheetal jal mein maa main khub nahata hun dekh ke insaanon ki krni maa main dukhi bhut ho jata hun apne saare paapon ko dhokr mailaa tujhko kr jata hun kitni paavn pvitr ho maa tum fir kyon kachra, faiktriyon se ganda paani insaan tumme girvata hai jnm se lekr mrne tk hr jgah tujhe hi pata hun bholenath ki jtaa se nikli Bhagirathi main tujhko shish jhukata hun
सारे जग में कहीं नहीं है, दूजा ऐसा देश कहीं... कल - कल करती बहती नदियां, है पर्वत कहीं, मैदान कहीं... राम जन्म की भूमि है जो, सरयू पार स्थान यहीं... हुआ राधा - कृष्ण का मिलन जहां पर, यमुना का वह घाट यहीं... भागीरथ के तप से हर्षि
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