अंत की ओर
0एक दिन तो अंत आता है , जब पानी सिर से ऊपर हो जाता है , सब कुछ डूब जाता है अज्ञानता में , बिना सूझ-बूझ के जो छलांग लगाता है , गहरे नदी के जल के अन्दर, आवेश में भूल जाता है, नजर-अंदाज कर देता है अपनी कमियों को , तैरने से अनभिज
एक दिन तो अंत आता है , जब पानी सिर से ऊपर हो जाता है , सब कुछ डूब जाता है अज्ञानता में , बिना सूझ-बूझ के जो छलांग लगाता है , गहरे नदी के जल के अन्दर, आवेश में भूल जाता है, नजर-अंदाज कर देता है अपनी कमियों को , तैरने से अनभिज
बहुत की इंतजार तेरा, तेरा तो कुछ पता ही नहीं क्यों परेशान करता है मुझको क्यों इतना है लगाव तुझको मुझसे बस अब, वक़्त ठहर जा। नदी की उस किनारे में मुझे बस छोड़ दे, वर्षों पहले जहां मैं थी बहती हुई नदी को देख सीखी जो भी
क्या वह सारा वहम था,,, जब तू होता हमारे पास था।।1।। कहता है कुछ याद नहीं,,, क्या तू कभी न मेरे साथ था।।2।। यूं तो आज मैं बरबाद हूं,,, मतलब कल भी बरबाद था।।3।। ना अब रही पास दौलत,,, कल खर्चे मे यूं बेहिसाब था।।4।। तरसोगे यूं स
, 2022 रेगिस्तान की तरह मैं तपता, पतझड़ की तरह मैं उजड़ा। मायूसियों से घिरकर मैं थका, किसे सुनाऊ अपने दिल की व्यथा। असंख्य आँसू मेरे आंखों में, अथाह वेदना है मेरे दिल मे। असक्तता मेरे चेहरे के भावों में झलकता, किसे सुना
अपनों ने समझ लिया हमको बेकार है। मेरे वजूद पर अबना किसी को ऐतबार है।। क्या करूं कोई देता ना हमको काम है। जानने वालों में मेरा नाम बड़ा बदनाम है।। किसी भी तरह मेरी जिंदगी सुधार दे। मेरे खुदा तुझसे यही मेरी इक फरिय
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